घडी की सुई
घडी की सुई
सुबह अलार्म बजते ही
देखा घड़ी ने हैं छह बजाये
बंद किया और सो गया मैं
इतनी जल्दी जाग न आए।
मेरी पत्नी ने मुझे फिर
झझकोर कर था जगाया
घड़ी तरफ देखा जब मैंने
घड़ी ने था सात बजाई।
पत्नी कहती चाय पी लो
फिर हमको है सैर को जाना
आठ बजे है तुम्हें नहाना
नौ बजे ऑफिस है जाना।
दस बजे ऑफिस पहुंचा मैं
बॉस ने फिर था मुझे बुलाया
ग्यारह बजे शुरू हुई मीटिंग
बारह बजे मैं वापिस आया।
एक बजे एक दोस्त आया
कहता लंच बाहर हैं करते
आज की आधी छुट्टी दे दो
बॉस से पूछा डरते डरते।
दो बजे ऑफिस से निकले
तीन बजे पहुंचे होटल में
खाना आर्डर किया था हमने
पानी बिसलेरी बोतल में।
चार बजे होटल से निकले
दोस्त बोला चलें क्या मूवी
मैंने बोला पांच बज रहे
डांटेगी मुझे मेरी बीवी।
छह बजे का शो था और
सात बजे इंटरवल था
आठ बजे शो ख़तम हुआ
नौ बजे अपने घर था।
बीवी बोली कहाँ गए थे
भाई ने आज है आना
जल्दी से तैयार हो जाओ
दस बजे बाहर है जाना।
हम तीनों फिर निकल पड़े थे
खाना हमने बाहर था खाया
नजदीक था होटल, खाना खा के
ग्यारह बजे मैं वापिस आया।
घर आकर आराम किया
एक घंटा फिर गप्पें मारीं
बारह बजे उसे विदा कर दिया
आँखें हो रहीं थी भारी।
बारह बजे से छे बजे तक
सपनों में खो गया मैं
छे बजे फिऱ अलार्म बज गया
बंद करके सो गया मैं।
एक दिन की मेरी दिनचर्या
चौबीस घंटे में ख़तम हुई
जिंदगी भी ऐसे ही घूमे
जैसे घूमे घड़ी की सुई।
