गांव
गांव
खेत का चावल खेत का गेहूँ
खेत का आलू बैगन रहता था
मिरची धनिया अदरक लहसुन
सब अपने ही खेत में उगता था
दलहन तिलहन सब खेत के
कुछ न खरीदना पड़ता था
महीने में एक आध किलो नमक
वो भी महुआ/टिकुला से बदला जाता था ।1।
सर्दी खांसी की दवा तुलसी
बुखार गठिया या हो अस्थमा
गिलोई के साथ
कुछ मिश्रित कर खिलायी जाती थी
दादाजी जड़ी लाते जंगल से
दादी उसे घिस पिलाती थी।
असाध्य बिमारी में भी
शहर न जाया जाता था
बिषम परिस्थिति में ही
वैद्य को घर बुलाया जाता था
शहर की तो बात ही छोड़ो
वो भी गाँव में मिल जाया करते थे
जीभ आँख और नब्ज देख कर
मर्ज समझ वो जाते थे
फीस के बदले नास्ता पानी
पर पैसा कभी न लेते थे
कागज के छोटे छोटे पुड़िया में
रामबाण दवा वो कर जाते थे। 2।
एक अनोखी दुनिया थी गाँव की
पता नहीं कब कैसे सब नष्ट हुआ
जब से गंध लगी शहर की
सभ्यता संस्कृति यहाँ भी भ्रष्ट हुआ
संतोष ही संपदा जहाँ की
लोभ मक्कारी की छाँव न थी
गरीबी लाचारी आई कहाँ से
जहाँ ठाठ बाट किसानी थीे ।3।
कलकल बहती नदी की धारा
छोटे पर्वत की जल फव्वारा
खेतो में हरियाली छाई है
झुकी हुई है आम की डाली
उसमें भी मंजर आई है
लौट आओ गाँव फिर से
शहर की हवा जहरीली है
सुना है तुम्हारे शहर में
छूत की कोई नई बिमारी आई है।4।
