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Jayantee Khare

Others

4.9  

Jayantee Khare

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फ़ासले

फ़ासले

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एक अकेली राह है मील भर ये फ़ासले

जो कभी मिटते नहीं हैं दिलों के फ़ासले

 

एक छत के थे तले अजनबी दो रह रहे

दरमियां पसरे हुए चुपके चुपके फ़ासले


कहने भर को था सुक़ू शोर साँसों का लगा

चीखकर देते रहे हाज़िरी ये फ़ासले


दुनियादारी भी रही कुछ थी बेपरवाहियाँ

कुछ तो वो मग़रूर थे कुछ थे ज़िद्दी फ़ासले


बेवज़ह के शक़ शुबह बेबात के मशवरे

कहने भर को थे क़रीब देखे किसने फ़ासले


चंद धारे दर्द के बन ज़हर रिसते रहे

रूह को जो रूह से दे गये ये फ़ासले


न किया कोई करार थे न कोई फ़ैसले

हौले हौले हो गए फ़िसलनों से फ़ासले


प्यार की क़ीमत नहीं नाहक़ ही था हौसला

उन को खो के सोचते ख़ुद से ही क्यूँ फ़ासले


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