एक सहेली
एक सहेली
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लखनऊ से आयी है,
अंदाज़ लखनवी लायी है।
बोली इनकी इतनी मीठी,
कोयल भी शर्मायी है।।
पापा की थी लाडली बेटी,
नाज़ खुद पर वो करती थी।
खोकर पापा को जीवन में,
बचपना अपना खोई है।।
वार्डरोब भरे हैं कपड़ों से,
फिर भी शॉपिंग को ललचायी है।
यहाँ से लेकर सिंगापुर तक,
पोषाक ख़रीद वो लायी है।।
अपने काम में परिपक्व है,
ग़लती कभी नहीं करती है।
ज़रूरत हो तो हमारी भी,
ग़लतियों पर पर्दा करती है।।