एक प्रण
एक प्रण
एक प्रण हमने लिया जब से होश संभाला हमने,
जन्म लिया है बेटी बनकर इस धरती पर,
कभी ना कोई दर्द अपनी जननी को देंगे,
पाला है उसने हमको नींदे अपनी कुर्बान करके।
माना हमने सताया बहुत बचपन मे उसको,
ज़िद्द अपनी हर मनवाई हमने उससे,
वो तो सब थी बचपन की नादानियां,
भूल चुके हम उनको कब का,
जब से होश आया समझदार हम हो गए।
कोई ना ऐसा कर्म करेंगे जिससे सर झुके माता पिता का ,
हर बात उनकी हम मानेंगे उनकी खुशी होगी सबसे पहले,
दर्द फिर चाहे मिल जाये हमको कोई गम नहीं होगा हमको,
उनके चेहरे की खुशी के आगे ये गम भी सह लेंगे हँसकर।
नाम उनका ना कभी खराब करेंगे एक बेटी होने का हर फ़र्ज़ निभाएंगे,
बेटो से ज्यादा होती है लाडली बेटियां ये बात हम सदा याद रखेंगे,
कोई भेद भाव नही रखेंगे दिल मे अपने,
माता पिता की लाज ज़माने में रखेंगे,
कल को हो गर्व उनको हमपर इस बात का प्रण लिया हमने ।