एक कथा: विवाद की
एक कथा: विवाद की
एक समय की बात सुनो,
दो भाई रहते साथ साथ,
प्रेम स्नेह से बंधे हुए थे,
थामे एक दूजे का हाथ।
मगर एक दिन किसी बात पर,
ठन गयी दोनों की तकरार,
ज़मीन ये तेरी मेरी है या,
इस पर निकल गयी तलवार।
जब ना निकला कोई हल तो ,
झगड़ा पहुंचा पंचों तक,
समाधान तब बहुत से ढूंढे,
सारे पर हो गए विफल।
थक हार कर पंचों के तब,
मन में आया एक विचार,
किसी भाई की ज़मीन नहीं ये,
इस पर है प्रभु का अधिकार।
एक पंच ने बतलाया,
कल प्रभु सपने में आए थे,
ये ज़मीन मेरी है ऐसा,
दावा करने आए थे।
जिस ज़मीन के लिए लड़ रहे,
प्रभु ही इसका मालिक है,
इसलिए अब तुम दोनों में इसका,
कोई नहीं अधिकारी है।
भाई समझ पाते कुछ तब तक,
बात दूर तक चली गयी,
रातों रात ही उस ज़मीन में,
मूरत प्रभु की सज गयी।
दोनों भाइयों ने देखा तब,
पत्थर को बनते भगवान,
मिट्टी का जो ढेर कभी था,
आज बन गया पूजा स्थान।
लोग रोज़ अब उस ज़मीन की,
नई कहानी गढ़ते थे,
कुछ कहते थे जन्मभूमि प्रभु की,
कर्मभूमि कुछ कहते थे।
पलक झपकते ही ज़मीन पर,
मंदिर भव्य खड़ा हुआ,
इंसान की माया से आज ,
दिव्य प्रभु का जन्म हुआ।
भगवान ने रचा जगत और,
मानव का श्रृंगार किया,
उसी मनुज ने आज प्रभु का,
घर बना उद्धार किया।
भाइयों ने जब देखा ये तो,
भूल समझ में आई थी,
बड़े जतन से दोनों ने,
एकमात्र ये पूंजी कमाई थी।
जो ना लड़ते आपस में,
ये अपनी संपत्ति कहलाती,
इस तरह ना पूंजी अपनी,
सामाजिक सी हो जाती।
पर विशिख स्यन्दन से निकले,
वापस क्या आ पाता है,
बिना विचार कर्म करे जो,
अंतकाल पछताता है।।