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अनिल कुमार निश्छल

Others

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अनिल कुमार निश्छल

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एक हसीन शख़्स

एक हसीन शख़्स

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नस-नस में उतर गया कोई

हँस-हँस के बिखर गया कोई


देख के उस चाँद के टुकड़े को

फिर से देखो सँवर गया कोई


ठहर जाते हर कदम उसे देख

फिर कहाँ किधर गया कोई?


ऊपर से इक नायाब मूरत है

देख के जिसे ठहर गया कोई


आते-जाते रस्ते में देखते रहे

फिर से देखो उधर गया कोई


उसकी आँखें आईना बनाकर

आईने में ही छितर गया कोई


मनाही की उसने इश्क़ के लिए

सुनकर ये सब सिहर गया कोई


छुप-छुप के मरता रहा ताउम्र जो

गैरों के साथ देख के मर गया कोई


अश्क़ बहते रहे मौत से लड़ता रहा

ठोकर लगी और सुधर गया कोई


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