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Dr. Tulika Das

Others

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Dr. Tulika Das

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एक बचपन

एक बचपन

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रेल की पथरीली पटरियों मे भागता हुआ एक बचपन

जीवन है कठोर समझ रहा है वो बचपन

रब्र के पहिए संग गोल-गोल घूमता है बचपन

खुद को हालात संग ढालना सीख रहा है बचपन ।

पर है तो बचपन ही ना

जरा जरा सी उम्मीदें

बहुत सादी है ख्वाहिशे

कभी बर्फ का गोला

कभी टॉफी मीठी सी

कभी रंग बिरंगे खिलौने देख

थम जाता है बचपन

कभी पांव की चुभन है कहती

अब तो बदल लो चप्पल ,

फिर भी उदास होता नहीं वो बचपन ।

तभी तो है वो बचपन।


आज थोड़ा खुश है वो बचपन

कि जेब आज उसकी पूरी खाली नहीं

दिया है किस्मत ने आज उसे भी

बहुत नहीं पर थोड़ा तो है सही ।

उस थोड़े में ही बहुत खुशी ढूंढ लेता है वो बचपन

जोड़ी खुशी जेब में , थोड़ी हंसी होठों पे

लिए खुशी मन में आगे बढ़ता है बचपन

जेनुकसान दूजे का देख के ठिठक जाता है वो बचपन

करता है खाली जेब अपनी

दुजे की हंसी से वो जेब अपनी भर लेता है

ख्वाहिशें उसकी देखती रह जाती है

दूसरों की हंसी में खुशियां वो ढूंढ लेता है ।

सिखा रहा थाअब तक वक्त

उसे जिंदगी के सबक

आज एक सबक वह भी वक्त को देता है

जिंदगी कहते हैं किसे? जीना होता है क्या ?

बचपन वो मुस्कुरा के सिखा देता है ।



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