एक अनुभूति
एक अनुभूति
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किस किस तरह से ,
ये मैं जाहिर करूं,
अपनो की ही बातें ,
मैं क्यों सरेआम नीलाम करूं,
और कहना तो मैं चाहती नहीं ,
पर क्यों बेवजह , मैं परेशान करूं,
और उद्देश्य पूर्ण तो कर भी लूं ,
तो गैर कानूनी सी क्यों मैं कारवाई करूं,
और प्रतिशोध लेना मेरा कार्य नहीं,
इसे तो मैं स्वयं का अपमान कहूं ,
और हंस के दो गम सह भी लूं तो,
प्रस्तुति अपनी नम आंखों से कहूं,
और लाख दर्द हों सीने में,
फिर भी मैं अपने मौन से व्यक्त कहूं ।