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VIVEK ROUSHAN

Others

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VIVEK ROUSHAN

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दूर हाथों से तारा जाए

दूर हाथों से तारा जाए

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किसी की यादों में कब तलक रोया जाए

शाम हुई चलो अब घर को चला जाए 


ग़म और भी हैं दुनियाँ में, एक यही तो नहीं 

एक ही ग़म के सहारे कब तलक जिया जाए 


सफर-ए-ज़िन्दगी में लोग आएँगे लोग जाएँगे 

चलो मय-कदे चलें दो चार जाम पिया जाए 


सो गया हूँ ऐसे जैसे कुछ बचा ही न हो 

किसी को बुलाया जाए मुझे जगाया जाए 


घर में बूढ़े माँ-बाप हैं सभी रास्ता तकते होंगे

जो लोग रूठ गए हैं चलो उन्हें मनाया जाए 


ज़िन्दगी भी देखिये कैसे-कैसे सितम ढाता है 

चाँद की चाह करूँ तो दूर हाथों से तारा जाए  



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