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JAI GARG

Others

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JAI GARG

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दुर्दशा

दुर्दशा

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सीमित दायरे में मानव कब तक इस तरह जीता रहेगा

प्रेम हुआ वह भी काट छाँट कर मिला तो आधा अधूरा

पास आना पर जीने मरने की कसम कोई कैसे भुलाए

हर क़तरे में जब संक्रमण की बूँदें दूरी बनाने को कहें।


गृहयुद्ध जैसा है, जिधर भी जाओ पीछा नही छोड़ रहा

ग़म डुबोने को अब बोतल बड़ी मशक़्क़त से मिलती है!


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