दस्तक
दस्तक
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दस्तक देते देते हाथ थक गए
ज़ालिम ने दरवाज़ा खोला ज़रा सा
और बोला, पहचाना नहीं
मैंने आंखों में उसकी झांकते हुए
अपना पता दिया
उसने अनजान बन कहा
आपको कुछ ग़लतफ़हमी हुई
मैं सिर झुका कर कर बोली
शायद, मुझे माफ़ कीजिए
और उसने दरवाज़ा मेरे मुंह पर
ही बंद कर दिया