दशामाता व्रत, पूजन
दशामाता व्रत, पूजन
दशामाता का यह पावन व्रत,पूजन
करती महिलाएं जो होती है,सुहागन
बिगड़ा हुआ जिनका आर्थिक जीवन
वो कर ले,यहां दशामाता व्रत,पूजन
दशामाता तो गौरी का है,एक रूपम
यह मां पार्वती का है,सुंदर मन धूपम
रानी दमयंती ने किया था मन से व्रत
राजा नल का बिगड़ा,जब दशा यौवन
सच्चे मन से इस व्रत को करने लेने से
फिर से सुधरा नल-दमयंती का जीवन
घर की लक्ष्मी,स्त्रियां करे जब यह व्रत
स्वर्ग बनता,फिर बिगड़ी दशा का नर्क
इसदिन करके,महिलाएं सोलह श्रृंगार
करती है,वो पीपल का पूजन बार-बार
कच्चे सूत में लगाकर के वो दस गांठ
बांध पीपल,करे वो परिक्रमा दसबार
फिर पहनती गले मे वो पीला धागा
जो बुरी दशा की मिटा देता है,बाधा
पीपल की वो छाल,जिसे कहते है,धन
लाती,रखती है,तिजोरी में स्वर्ण साथ
इस छाल को कहते हम पारस पत्थर
इसको तिजोरी में रखने से,भरता घर
इसलिये जो भी करे दशामाता,पूजन
उसका कभी नही घबराये,साखी मन
मन से करे जो भी दशामाता व्रत,पूजन
वो कंगाल से बन जाता,करोड़पति जन
सबजन बोलो मेरी पार्वती मां की जय,
इनके पूजन से मिटते,सब दुःख अक्षय
जो करे सदा दशामाता का व्रत,पूजन
बुरी दशा का न आये,उन्हें कभी स्वप्न।