दर्पण
दर्पण
यह जनम नहीं ,यही मरण है।
ये विश्व नहीं ,एक रण है।
यहां मानवता का कोई मोल नहीं,
मर्यादा के भी बोल नहीं ,
उठा पटक सा जीवन है,
मौन हो गए सब मन है।
इस त्राहिमाम का कोई अंत नहीं ,
किसी इश्वर का भी पता नहीं ,
आस को भी आस नहीं ,
कुछ भी किसी को एहसास नहीं।
हो सकता हैं स्वर्ग कही हो,
पर नरक यहीं हैं।
यह जनम नहीं ,
यही मरण है ।।