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Dhan Pati Singh Kushwaha

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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दर्द मां-बाप का

दर्द मां-बाप का

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कितना विचित्र है यह संसार,

देता है दर्द और मांगता प्यार।


बालरूप में जन्म हैं हम लेते,

असह्य दर्द जननी को हैं देते।

पर भुला मात पीड़ा वह सारी,

सर्वोत्तम सेवा करती है हमारी।

बढ़ती आयु भूल उसको जाता,

 भाता हमको दूजा ही संसार।

कितना विचित्र है यह संसार,

देता है दर्द और मांगता प्यार।


मात-पिता हैं कहते हमें प्यारा,

बच्चे ही हैं सारा संसार हमारा।

हैं कष्ट उठाते कितना ही सारा,

बच्चों से कोई भी नहीं प्यारा।

सब सुख न्यौछावर बच्चों पर,

उनके हित करते त्याग अपार।

कितना विचित्र है यह संसार,

देता है दर्द और मांगता प्यार।


चलती उम्र शिथिल जब होते,

बच्चे की उपेक्षा देख हैं रोते।

होती उनको व्यथा नर्क सम,

भेजे जाते हैं जब वृद्धाश्रम।

वही सभी ज्यादा ग़म हैं देते,

देना होता है जिनको प्यार।

कितना विचित्र है यह संसार,

देता है दर्द और मांगता प्यार।


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