दर्द-ए-दिल
दर्द-ए-दिल
1.**दर्द-ए-दिल**
तमस कहां चाणन को सहता,
चाणन भी कब चुप है रहता,
कौन पहचाने दर्द-ए-दिल को,
दर्द तो दिल में हरदम रहता।
मैं कब अर्श से तारे तोड़े,
मैं कब कलियां फूल मरोड़े,
मेरे लिए क्यूं हरदम तेरे,
सीने में इक बहम सा रहता।
टूटे शीशे कब जुड़ते हैं,
ओस में पत्थर घुलते हैं ?
बज़म तेरी का सुख पाने को,
पत्थर दिल नर्म सा रहता।
तख़त को जो पा जाते हैं,
पर्वत से टकरा जाते हैं,
उनके लिए क्यूं दिल में तेरे
फिर भी इक रहम सा रहा।
कौन पहचाने दर्द-ए-दिल को,
दर्द तो दिल में हरदम रहता।
**एस.दयाल सिंह **
2.**ज़रीब**
कभी कभी हो ही जाता, यूँ हादसा अजीब सा,
मेरे संग रूठ जाता, मेरा अपना नसीब सा।
वो जो दूर घेर लिया है, आंधी औ' तूफ़ान नें ,
वो कोई बिरछ नहीं, है आदमी ग़रीब सा|
सुबह से जो शाम तक,उठाके लाश फिरता है ,
वो तो कोई कंधा नहीं,है लगता सलीब सा।
जल्दी से जितनी, अंधेरी रात बीत जाए,
सुबह का उज़ाला होता, है उतना करीब सा।
हदबंदी कर लोग, भूमि को तो नापते हैं ,
नापे जो दिलों की दूरी, कहाँ है ज़रीब सा?
**एस.दयाल सिंह **
3.**ढूँढता हूँ**
चमकते सितारों में आसमान ढूँढता हूँ,
आदमियों की भीड़ में इंनसान ढूँढता हूँ।
कहानी जब चलती है बीते बचपन की,
दादी माँ की पोटली सामान ढूँढता हूँ।
नीति और मन पारदर्शी हो चाहिए,
ढका रहे तन परिधान ढूँढता हूँ।
आग लगी जब लगी लगी ही क्यूँ झोंपड़ी में,
सेंकने छुआ हो जिसे मकान ढूँढता हूँ।
मान और सम्मान मिला सर के मुकुट को,
कंगालों का सम्मान करें धनवान ढूँढता हूँ।
दिल्ली से लाहौर जोड़ दिया पथ गामिनी ने,
दिलों से दिलों को जोड़े यान ढूँढता हूँ।
कल था वो बीत गया कल फिर आवेगा,
चिंता में डूबा हूँ वर्तमान ढूँढता हूँ।
**एस.दयाल सिंह **
