दर्द भी दर्द से हुआ,परेशान
दर्द भी दर्द से हुआ,परेशान
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दर्द भी दर्द से हुआ बड़ा परेशान है
जख्म से ज्यादा,बातों ने ली जान है
सबका पकड़ रखा,तम ने गिरेबान है
हर व्यक्ति खुद के चेहरे से अनजान है
आलोक का भी खोया हुआ,जहान है
आईना,आईने को देख हुआ हैरान है
क्या मेरी तस्वीर सच में मेरे समान है?
चेहरों पर सजी,हुई झूठी मुस्कान है
सबने तोड़ दिया खुद का अभिमान है
जिसको मानते,हम अपना इंसान है
वो ही कर रहे,छिपकर लहूलुहान है
दर्द भी दर्द से हुआ,बड़ा परेशान है
किसे दर्द बताये,हर मनु,बना शैतान है
जो देता है,विश्वास की बड़ी जुबान है
वो ही पीछे से बेच रहे, अपना ईमान है
हर रिश्तें की निकाल रहा, वो जान है
आजकल का स्वार्थी दीमक इंसान है
अब खून ही जताने लगा,अहसान है
जाएं तो जाएं कहां,कोई भला इंसान है
दिल में रिक्त हुआ,अपना ही स्थान है
जख्मों पर लगे,हुए कुछ ऐसे निशान है
फूल भी छुए तो लगते,वो शूल समान है
फूलों में छिपे हुए,शूल कई अनजान है
जिसे मित्र समझते,वो ले रहा जान है
टूट चुका,मिलकर रहने का अरमान है
सब मतलबी हुए,आज के मेहमान है
दर्द भी दर्द से हुआ,बड़ा परेशान है
भीतर बना,इतना बड़ा कब्रिस्तान है
अब लाशों पर लगा हुआ,इल्जाम है
तू न डरना,तू बनना सच्चा इंसान है
कितने दर्द देगा,यह ज़माना बेईमान है
तू रख अपने इरादों मे सच की जान है
एकदिन दर्द की निकल जायेगी जान है
तू बनना,साखी वो मजबूत सी चट्टान है
जिससे टकराकर टूटे,हर जग तूफान है
दर्द भी बोले यह कैसा,फौलादी इंसान है
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"