दोस्ती
दोस्ती
गुजरा जमाना यादों की किश्ती
जिंदादिली और यारो की मस्ती
अल्हड़ पन पे एक दूसरे को चिढाना
यारों की खातिर दूसरों से झगड़ जाना
ना दिन ना रात की फिक्र करना
बस दोस्ती में चारों पहर रहना
मां की डांट पिता का गुस्सा सहना
पर दोस्तों पर आंच ना आने देना
ना रुकने वाली हंसी के ठहाके लगाना
पेट पकड़कर इधर-उधर लोटना
उम्र के साथ दोस्ती का परिपक्व होना
फिर अपने बच्चों को उनकी सीख देना
चिंतन मनन और ज्ञान की बात करना
बैठे-बैठे मुश्किलों का हल ढूंढना
दुनिया की उलझन से दूर रहना
हर फिक्र में दोस्तों को गले लगाना
नहीं है किसी भी रिश्ते में अपनापन इतना
दोस्ती के रिश्ते में भूल जाते हैं गम अपना
यारो सब करना जिंदगी में बस
दोस्त एक दूसरे को कभी दगा ना देना।
