दोस्त....
दोस्त....
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तुम्हें अपना ही समझते थे,
राज़ अपने दिल के,
तुमसे ही साझा करते थे।
थोड़े नादान थे।
तुम्हारे नापाक इरादों से
अनजान थे।
ज़िंदगी का बहुमूल्य सबक
सिखाया तुमने,
जहाँ रहो खुशहाल रहो,
तुम तो खुद ही दया के पात्र हो,
मेरे दोस्त।
विश्वास का आदर तुम क्या
जानो, कुछ शब्द,
हर शब्द कोश में कहाँ पाये
जाते हैं।