दलाली की दुनिया।
दलाली की दुनिया।
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इस दलाली की दुनिया में
क्या नहीं बिकता,
हर दिन बिकता एक
नया रिश्ता।
पैसों की आंधी में
हो गए इतने अंधे,
रिश्तों को भी बना
लिए अपने धंधे।
जो रिश्ते कभी हुआ करते थे
अनमोल,
भरी महफिल में लगते है
आज उन्ही के मोल।
क्या फर्क पड़ता है
माँ बाप के प्यार से,
सोचते है ईमान बढ़ेगा तो
सिर्फ रकम बढ़ाने से।
इतने मसरूफ हो गए
जोड़ने में नोटो की गड्डी,
की बेच ही डाली सारी
यादों की रद्दी।
इस दौलत की हवा में
ऐसे उलझ गए,
की सभी कि खैरियत
लेना भी भूल गए।
क्या माँ की ममता,
यारों की यारी,
पैसे की दौड़ में
सब बेच डाली।
