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Preeti Sharma "ASEEM"

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Preeti Sharma "ASEEM"

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दल - बल - छल

दल - बल - छल

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दल - बल - छल सब, 

यहीं धरा रह जायेगा।

प्राण पखेरू पंछी जब,

जीवन डाल से उड़ जायेगा।


छल - बल - दल सब।

यहीं धरा रह जायेगा।


जोड़ - जोड़ कर,

कितना अम्बार खड़ा किया।

मन नही माना,

होड़ - होड़ में सब किया।


अर्थ - पूर्ण जो लगता था।

सब अर्थ - विहीन हुआ।

कितना आगे भागा था।

सब शून्य में लीन हुआ।


दल - बल - छल सब,

यहीं धरा रह जायेगा।


जीवन की प्यास,

कभी न खत्म होती।

मौत सामने है।

फिर भी एक आस होती।


इच्छा के असंख्य जालों में,

फंसा रह जायेगा।

अंतिम इच्छा से भी,

कहाँ... बच पायेगा।


दल - बल - छल

यहीं रह जायेगा।

खुद को खोजेगा।

तभी उसे पायेगा।।


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