दल - बल - छल
दल - बल - छल
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दल - बल - छल सब,
यहीं धरा रह जायेगा।
प्राण पखेरू पंछी जब,
जीवन डाल से उड़ जायेगा।
छल - बल - दल सब।
यहीं धरा रह जायेगा।
जोड़ - जोड़ कर,
कितना अम्बार खड़ा किया।
मन नही माना,
होड़ - होड़ में सब किया।
अर्थ - पूर्ण जो लगता था।
सब अर्थ - विहीन हुआ।
कितना आगे भागा था।
सब शून्य में लीन हुआ।
दल - बल - छल सब,
यहीं धरा रह जायेगा।
जीवन की प्यास,
कभी न खत्म होती।
मौत सामने है।
फिर भी एक आस होती।
इच्छा के असंख्य जालों में,
फंसा रह जायेगा।
अंतिम इच्छा से भी,
कहाँ... बच पायेगा।
दल - बल - छल
यहीं रह जायेगा।
खुद को खोजेगा।
तभी उसे पायेगा।।
