,,,,,,,,,"दिनकर "
,,,,,,,,,"दिनकर "
उलझ गए थे,
भटक गए थे,
रास्ते धूमिल,
लगने लगे थे !
मोतियाबिंद,
हमारी आंखों ,
में अपना घर ,
बना चुके थे !
कुहासे,
सबको अपनी,
आगोश में रख,
दृग्भ्रमित कर ,
भटका चुके थे !
हम टोह-टोह ,
करके आगे ,
पगडंडियों को ,
देख -देख कर ,
बढ़ने लगे !
परंतु शिथिलता ,
बोझिलता थकान ,
मेरे भाल पर यूँ ,
लहरा ना सके !
कुछ समय के ,
बाद एक अद्भुत ,
ज्योतिपुंज मेरी ,
आंखों से टकराई
प्रकाश ने तिमिरों ,
को शिकस्त किया
दिव्य दृष्टि से पथ ,
आलोकिक हो गया !
कुहासे ने दिनकर को,
देखकर घूंघट अपने ,
माथे से सरका दिया !!