दिली तमन्ना
दिली तमन्ना
आज एक कानून बना दो ,
इन पतियों को भी विदा कर
ससुराल भेज दो
ज्यादा नहीं तीन - चार साल ही रह ले,
वहां रह अपने ससुराल वालों की
सेवा करने दो।।
क्या, क्यों, कैसे ना करे ये
हम ड्यूटी जाए और घर रह
कर काम करें ये,
उफ़ न करे चुप न करें
जब भी हम घर वापिस आए
हँसते हुए मिले ये।।
माता - पिता का ध्यान रखें ये
उनके कहे का मान रखे ये
साले और साली को पूरी इज़्ज़त दे,
घर पर रह कर सारा काम करे ये।।
हम आये और बैग साइड में पटक के
आवाज़ लगाएँ,
कहां हो सुनते क्यों नहीं
जरा एक गिलास पानी तो पिलाएं।।
थक आज बहुत गई हूं, सोने जा रही हूं
ये क्या?
बिस्तर में ये क्या - क्या फैला रखे हो
घर पर रहते हो , कुछ काम नहीं
करते हो
दिन भर न्यूज़ और मैच देख टाइम
पास करते हो।।
जब कभी अपने घर जाने की सोचे
तो हम भी दस बहाने बताए
फिर अपनी खातिरदारी करवाएं,
और बोले जा रहे हो पर ध्यान रखना
लेने मैं नहीं आऊगी
अपने पिताजी से कह देना तुम्हें वापिस
छोड़ देंगे
दो तीन - दिन में ही सारे मेल मिलाप
निपटा लेना तुम।।
फिर समझ आयेगा घर छोड़, घर बसाना
क्या होता है,
रिश्तों को निभाने के लिए कभी - कभी
मौन भी होना पड़ता है
नहीं सब के लिए मैं ऐसे कह रही हूं
पर ज्यादातर परिवार का किस्सा यहीं
होता है।।
इज़्ज़त दे हर एक को
तभी इज़्ज़त पाओगे
जिंदगी एक रैन बसेरा है
पता ही नहीं चलेगा कब पंख लगे
उड़ जाओगे।।
