दिखावा
दिखावा
1 min
185
दिखावे में साखी कुछ नहीं धरा है
हर आंख में पड़ा कचरा उजला है
लोगों की जेब में न बिल्कुल पैसे,
फिर भी दिखावे कर रहे कैसे-कैसे
जीवन आज दिखावे का हो रहा है
हर शख्स आज बिन माटी मरा है
रिश्ते आज टूट रहे, पतझड़ की तरह,
खुद का लहूं ही जान लेने पे अड़ा है
दिखावा आज बहरूपिया बन खड़ा है,
आंखों में लोगों के आज शर्म न हया है
तू मत जी साखी दिखावे की तरह
हर शख्स होता नहीं सोना ख़रा है
जी बस तू यहां सच की जिंदगी,
सत्य से ही मिलता आनंद हरा है