STORYMIRROR

ca. Ratan Kumar Agarwala

Others

5  

ca. Ratan Kumar Agarwala

Others

दीया और बाती

दीया और बाती

2 mins
438

मिट्टी का दीया, और रुई की बाती,

युगों युगों से दोनों, एक दूसरे के साथी।

कहते हैं जलता दीया, पर जलती है बाती,

दीया बनता सहारा, बाती जलती जाती।

 

दीया और बाती रिश्ता निभाते, जैसे एक दूसरे के परिपूरक,

दीये के आगोश का लेकर सहारा, बाती जलती रहती अपलक।

दीया और बाती तो जैसे, हो कोई पति और पत्नी,

दीया निभाता तटस्थ जिम्मेदारी, बाती जलाती पहचान अपनी।

 

युगों युगों से चलता आया, दीया और बाती का यह नाता,

एक दूसरे के बिना, दोनों में कोई कुछ नहीं कर पाता।

दोनों सदा सँभालते एक दूजे को, इनके प्यार का न कोई सानी,

पति पत्नी के प्यार की, यही तो होती सच्ची कहानी।

 

होकर एक दूजे में समाहित, देते जग को प्रकाश,

दीये के कंधो का लेकर सहारा, बाती छू लेती आकाश।

पति का मिले जब सहारा पत्नी को, लड़ जाती वह जग से,

प्रेम के भाव से मिलती ताकत, लड़ जाती वह रब से।

 

दीया और बाती जलते जब साथ, अंधेरा भागता गलियारों से,

पति पत्नी में जब होता स्नेह, परिवार चलाते जिम्मेदारियों से।

एक अद्भुत रिश्ता दीया बाती का, जलकर देतें प्रकाश,

एक अप्रतिम रिश्ता पति पत्नी का, परिवार को देतें उल्लास।

 

दीया कहता बाती से, “मैं हुँ तो तुम हो”,

बाती कहती दीये से, “मेरे बिना तुम क्या हो”?

दीया कहता फिर बाती से, “मेरे सहारे से है तू जलती”,

 बाती कहती दीये से, “तु होता सिर्फ उत्तप्त,  मैं तो जलती रहती”।

 

नहीं समझते दोनों कुछ भी, हैं बिलकुल नादान,

झगड़ते रहते दोनों दिन रात, देते एक दूजे को ज्ञान।

रिश्ता यह सदा मांगता त्याग, एक दूजे से प्रतिदान,

जलते रहते, अंधकार भगाते, यही जिंदगी का प्रतिमान।

 

पति पत्नी में न कोई बराबरी, अपनी जगह दोनों महान,

एक के बिन दूजा न चले,  मिलकर करते सब कुछ आसान।

एक दूजे को देतें पूर्णता, अकेले दोनों हैं आधे आधे,

दोनों मिलकर बनते एक, साथ साथ ये जिंदगी को साधे।

 


రచనకు రేటింగ్ ఇవ్వండి
లాగిన్