SARVESH KUMAR MARUT
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साँझ भई अंधकार बढ़ चला,
दीप सजे अब तेल से भरे।
बार दिए हैं देखो सब ने,
अंदर-बाहर, ऊपर-नीचे।
चकाचौंध हैं सभी दिशाएं,
फ़ैल गयी है उजियारी।
हँसों-खेलों, फलो और फ़ूलो
हर वैभव ले कर आये।
नाश करे अंधकार दिलों से,
सब रौशन कर जाए दिवाली।।
कली नोंची गयी
कागा
बसंत आया
चले चलो
मैं पत्थर की ...
मैं नन्हीं-सी...
मैं पानी हूँ
मैं नन्हीं सी...
माँ
ओ !गौरैया-ओ !...