दीवाली
दीवाली
दीयों से उजाला कर दूँ घर में
पर दीवारों से छाले उतर रहें हैं
काफ़ी दिनों से
छत से गर्द उड़ रही है।
चिठ्ठियां बड़ी भाभी की बड़ी दर्द भरी
हर शब्द से आँसू टपक रहा है
कुछ ना कहा पर,
दुआ में खुशियाँ बरसा रही है।
नन्ही सी गुड़िया चाचू की सहेली
चाहती मनाये इस साल दिवाली।
माँ की आँखे भीगा आँचल
कहती यहां तो घना अँधियार
कब से पैर परदेश गया ठहर
दुख की शमां यहाँ जल रही है निरंतर।
क्यों मन आज कहे
छोड़ हवा शहर की
लिपटा रहूँ ,
चादर धूल मिट्टी की।
घर में मेरे रिश्तों की रंगोली,
क्यों ना मनाऊँ इस बार,
गाँव में दीवाली ।
रस्ता सदियों से देख रही हैं
चार आँखें घटते उमर की
पिघल रहा है वँहा सूरज
जहाँ हर पल,
छाँव पड़ी है ममता की।
यादों का झुरमुट ले चला हमें
उस थरथराती लौ की ओर
पीछे रह गये निस्संग उजास
और कुछ दीवारों के घर।।