दीदी और रक्षा बंधन
दीदी और रक्षा बंधन
कान ऐठती डांट पिलाती
आँख दिखाती माँ बाप से
ज्यादा रौब झाड़ती।।
दीदी मेरी दादी, नानी जैसी
दुनिया के सारे सदमार्ग बताती।।
बिगड़ न जाऊँ भटक न जाऊँ
माँ बापू के अरमानों की मंज़िल
का पल पल तत्पर मुझे कामयाब
इंसान बनाने का जतन प्रयास करती।।
मैं उसके नाज़ो का छोटा भाई
मेरी ख़ुशियों की खातिर
अपनी खुशियाँ कर देती कुर्बान।।
भारत भूमि की संस्कृति संस्कार
भाई बहन की खातिर बहन भाई
की खातिर कुछ भी कर देते त्याग।।
दीदी भी मेरी भाग्य भगवान का
सौभाग्य मेरे जीवन मूल्यों की
आत्मा प्राण।।
मेरे कदमों की आहट को लेती
पहचान गांव नगर गली मोहल्ले
हाथ पकड़ संग ले जाती ।।
बड़े गर्व से
बतलाती मेरा छोटा भाई मेरी
मर्यादा का कुल गौरव माँ बापू
का अभिमान।।
चाहे जितना भी परेशान करूँ मै
ना होती नाराज़ मेरी मुस्कानों
की खातिर हद से गुजर जाती।।
मेरी राहों के दुश्मन के लिये
दुर्गा
रन चंडी भी बन जाती।।
चाहे जितना हो नाराज मेरी
मुस्कान ही उसकी दुनिया का
नाज़ ।।
कभी दादी माँ कभी नानी
माँ जैसे संरक्षक सा करती व्यवहार।।
राखी के त्यौहार जब आता
आरती उतारती टिका करती
कच्चे धागे के बंधन में भाई बहन
के रिश्ते का मजबूत लगाती गाँठ।।
ईश्वर से मेरे दीर्घायु की दुआ मांगती
मैं उसकी रक्षा की परीक्षा
में दृढ़ रहूँ मेरे वैभव ताकत शक्ति
का देती आशीर्वाद ।।
चली गयी बाबुल का घर छोड़
पीहर के घर फिर भी हर रक्षा
बंधन को आती ।।
बचपन को भोली
भाली दीदी भाई की ख़ुशियों की
पहरेदार ।।
अजीब है भाई बहन का
प्यार कोई स्वार्थ नहीं एक दूजे की
ख़ुशियों की ख़ातिर एक दूजे का
त्याग रिश्ते की बुनियाद ।।