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Anita Sharma

Others

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Anita Sharma

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धूप

धूप

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मेरे आँगन को

स्लेट बनाकर

रोज़ अंजुली भर धूप

की स्याही से

अंकित कर देता है

सुनहले अक्षरों को

मढ़कर प्रेम…!

मैं करती हूँ श्रृंगार

अक्षर दर अक्षर

उन स्वर्ण आभूषणों का

और करती हूँ संवाद

उस अनजाने ओज से

जो देता है आभास

कि प्रभा की हर आभा

चमकी है सिर्फ मेरे लिए

उन प्रेम भरे हाथों की

लकीरों से गुज़रकर

आयी है ये सुनहली धूप.


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