धूमिल धरोहर
धूमिल धरोहर
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शहर है बहुत करीब
पर देख नहीं पाती मेरा वो घर
ढूंढ नहीं पाती मेरा वो घर
जहां मैं पहली बार दुनिया से मिली
जहां मैंने मां का स्पर्श महसूस किया
शहर है बहुत करीब
खंडहर बन कर धूमिल हो गए होंगे अब
बड़ी बड़ी अट्टालिका
बन सवर कर सज है होंगी
ना जाने कौन सी गली होगी
शहर बहुत करीब
पर देख नहीं अब पाती
मैं अपना घर
जहां सांसे मिली होठ फड़फड़ाए
आंखे नम है पर धुंध सा है
बहुत करीब हूं शहर के
पर देख नहीं पा रही
तलाशती परेशान हूं
ढूंढ नहीं पा रही मेरा घर
