धरती-पुत्र
धरती-पुत्र
तपता सूरज, जलती धरती,
नंगे पाँव न, सिर पर पगड़ी
श्रम सीकर से देह नहायी
अथक परिश्रम, सतत लड़ायी
जीवन में कितनी कठिनायी,
दृढ़ है तू, यह नहीं ढिठाई,
आज अगर विश्राम करेगा
अथक परिश्रम नहीं करेगा,
कैसे फसल काट पायेगा
श्रम- धन कैसे मिल पायेगा
वर्षा में जब धान उगेंगे
धरती को मंडित कर देंगे
झूमेंगे जो मन्द पवन में
मन को आनन्दित कर देंगे,
जलते पाॅंव भूल जायेंगे
धूप-छाॅंव मन को भायेगी,
खड़ी फसल मन हरषायेगी
फसल काट जब घर लायेगा,
दुःख-दर्द सब मिट जायेगा
मेहनत का फल मिल जायेगा
जीवन मधुमय हो जायेगा।