धरती माँ
धरती माँ
मेरे दो ही बच्चे हैं
विदेश में वो पढ़ते हैं
जब भी मैं वहां जाता हूँ
सब अपने से ही लगते हैं।
वैसे ही एक पापा वहां
जो घर को है संभालता
प्यार माँ का वैसा ही
जो बच्चों को है पालता।
भाई बहन भी वैसे ही
जो आपस में कभी लड़ते हैं,
पर जब कभी जरुरत पड़े
जान वो छिड़कते हैं।
दादा दादी वैसे ही हैं
बच्चों को वो समझाते हैं,
कभी डांटना भी पड़ जाए
उस से न वो कतराते हैं।
अलग हो सकती वेश भूषा
उनका धर्म , उनका खुदा
वो बोलते जो भाषा है
हो सकती है तुमसे जुदा।
सरहदों से हम सब बँट रहे
गरीब हैं, धनवान हैं
इस धरती की संतान हैं
आखिर में सब इंसान हैं।
धरती के हर एक कोने में
बुराई है, अच्छाई है
जो देते हम, मिलता वही
इस जग की ये सच्चाई है।
जिस देश में भी रहते हों
ये धरती एक परिवार है
वसुधैव कुटुम्बक़म
ये जिंदगी का सार है।