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Madhurendra Mishra

Inspirational

5.0  

Madhurendra Mishra

Inspirational

धर्म,न्याय और भारत

धर्म,न्याय और भारत

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कहाँ गए रामभक्त जब सीता का दामन छूट रहा है,

यही है क्या मंजर जब, मनुष्य राज्य लूट रहा है।


कहाँ गए वो मन्दिर बनाने वाले जो बात मर्यादा की कर रहे,

सवाल उठाओ व्यवस्था पर अब क्यों वो डर रहे।


खुदा से फरियाद करते हो,फिर क्यों बोलने पर हकलाते हो

गीता के उपासक हो तुम न,तो कर्तव्य से क्यों कतराते हो?


तुम निराकारी को आकार देने वाले हो,

तो फिर क्यों न्याय दे न पाए,

क्या सीखे तुमसे यह नवयुक,जब सवालों के जवाब तुमसे दिए न जाये।


वेदों का तुम में अभिमान,अन्य का न कोई सम्मान,

क्या यही है तुम्हारा ज्ञान,जो सोचने पर सबको करे परेशान।


क्या तुम अल्लाह के बन्दे हो,या समाज में एक फंदे हो,

धर्म के नाम पर करते धन्दे हो,तुम तो कही वास्तव में दरिंदें हो।


रोक लो सारे दुष्कर्म को,लाओ अन्दर थोड़े शर्म को,

व्यापार न बनायो धर्म को,पालन करो मर्म को।


भारत अटूट कहलाये,आसमान में तिरंगा लहराये,

कि विश्व इस बात को सरहाये,न कोई विपदा हम को ढहा पाए।


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