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नविता यादव

Others

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नविता यादव

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धरा सुशोभित

धरा सुशोभित

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चहुं दिशा मचा शोर है,

प्रदुषण से पर्यावरण गर्म ज़ोर है,

ये विपदा कैसी छाई है,,,

काला धुआं जिंदगी की सच्चाई है।।


रो रही धरा , चुुप खड़ा आसमान है

ये कैसा आघात ओजोन परत पर यार है,,

पाने की चाहत में , लालची बना इंसान है

अपनी सुरक्षा हेतु, प्रकृति को पहुुंचा रहा नुकसान है।।


कोशिश कर - कर हार गई हर परियोजना है

अपनी आत्म सुुक्षार हेतु प्रकृति नेे बनाई योजना है,

आया है "कोरोना" बनके उसका अंग रक्षक,,,

ले रहा है बदला, चुका रहा हिसाब किताब है।।


बंद है आज हर इंसान, अपने ही घरोंदे में 

ले रही है प्रकृति, खुलेेेे आंगन मेंं सांस

ज़र्रा ज़र्रा साफ़ हो रहा

महक रहा पत्ता पत्ता,

खुुश है आज तरु, नदी और तालाब

साफ है आसमां, शुद्ध हैै हवा का एहसास।।



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