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AKSHAT YAGNIC

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AKSHAT YAGNIC

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धीरे धीरे चल

धीरे धीरे चल

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धीरे धीरे चल ए मानव

क्यों रहे हरदम तू हांफ्ता?

जिंदगी को जी जरा आराम से

क्यों हर वक्त रहे तू भागता?

वक्त तो चलेगा अपनी ही गति से

नहीं बदलेगी उसकी गति तेरी मति से,

रुक और सोच कहां जा रहा है तू?

क्या इस उधेड़बुन में खुद से दूर जा रहा है तू?

जो वक्त गया वह वापस ना आएगा

अंत में एक दिन तू यूं ही पछतायेगा

इसीलिए आज शांति से सोच और आगे बढ़,

कि जीवन नहीं है कोई युद्ध का गढ़।


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