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chandraprabha kumar

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देवी कूष्माण्डा

देवी कूष्माण्डा

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चैत्र नव रात्र के चतुर्थ दिवस में

मॉं भगवती के चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा का ,

स्मरण ध्यान आवाहन पूजन करें

त्रिविधतापयुक्त संसार है इनके उदर में। 


ये नाश करें भक्तों के तापत्रय का 

ये सृष्टि की आदिस्वरूपा आदि शक्ति हैं,

शरीर कान्ति है सूर्य सम देदीप्यमान

अतुलनीय तेज और प्रभाव है इनका।


जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था

चारों ओर अंधकार ही अंधकार व्याप्त था,

इन्हीं देवी ने ईषत् हास्य से की थी ब्रह्माण्ड रचना

ब्रह्माण्ड उत्पन्न करने के कारण कहलाईं कूष्माण्डा। 


ये निवास करतीं हैं सूर्यमण्डल के भीतर

इतनी क्षमता और शक्ति है इनके अन्दर,

दसों दिशाएँ प्रकाशित इनके तेज और प्रकाश से

ब्रह्माण्ड में व्याप्त तेज इन्हीं की है छाया। 


ये अष्टभुजा देवी नाम से भी हैं विख्याता

इनके सातों हाथों में है कमंडलु ,धनुष ,बाण,

कमल -पुष्प ,अमृत - कलश , चक्र , गदा और 

आठवें हाथ में सब सिद्धि निधि दायक जपमाला। 



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