देर नहीं लगती
देर नहीं लगती
गुलों से महकता है बाग ए गुलशन,
खिजां कब आ जाए, देर नहीं लगती ।
थाम लो खुद बढ़ के हाथ हर मौके को तुम,
अगली गली में उसको मुड़ते देर नहीं लगती।
आंगन में झूलते हैं खुशियों के झूले ,
लो तुम भी उन खुशियों को जी लो,
गमों को आने में देर नहीं लगती।
कुछ पुण्य कमा लो भर दो दूसरों की झोली,
कब तुम उस श्रेणी में आ जाओ देर नहीं लगती,
याद कर लो कभी उन रिश्तों को जो यादों में बसता है तुम्हारी,
कब वो रिश्ता रूठ जाए तुमसे देर नहीं लगती।
कितना वक्त बर्बाद किया तूने मंदिरों मस्जिद की चौखट पर ,
कभी इंसानियत को भी गले लगा,
ईश्वर रूठ जाएगा तुझसे, देर नहीं लगती।
कितना नचाता है दूसरों को अपनी उंगलियों पर,
खुद कब कठपुतली बन जाएगा, देर नहीं लगती।
हर पल भागता है तू ,इस जिंदगी में कुछ ना कुछ पाने के लिए अपनी आकांक्षाओं का बोझ कब तक उठाएगा, मौत को आते हुए देर नहीं लगती।
अपनी गति में चलना अपनी चाल को समझ कि ठोकर कब खाएगा देर नहीं लगती।
इंसान बना रहे इंसान है तू हैवान मत बन,
जल जाएगा उसके तेज से देर नहीं लगती।
छोटी-छोटी ख्वाहिश आज ही पूरी कर ले,
मत कर उनको कल के हवाले,
तेरा किस्मत को बदलते देर नहीं लगती।
पहन ले वह लिबास, संजो कर रखा है कब से तूने,
बिछा ले वह चादर धूल खा रही है बक्से में ,
कब वो गल जाएगी देर नहीं लगती।
तुझ में अंदर आज भी एक बच्चा है ,
आज भी ,झांक के देख जरा,
खिलौनों से खिला उसको , रूठे तो मना उसको,
कब बुढ़ापा आ जाएगा देर नहीं लगती।
दौड़ती भागती जिंदगी से कुछ पल चुरा ले,
थोड़ा सा तो मुस्कुरा ले ,कुछ अपने लिए जी जिंदगी कुछ दूसरों के लिए ,
जिंदगी के गणित में गुणा- भाग करता रहता है,
तू कब इतिहास बन जाएगा देर नहीं लगती।
