देख प्रकृति के रौद्र रूप को
देख प्रकृति के रौद्र रूप को
देख प्रकृति के रौद्र रूप को,
मन आशंकित हो रहा था।
चीत्कार उठी थी चारों ओर,
जन मानस भी भाग रहीं थी।
देख प्रकृति के रौद्र रूप को,
मन आशंकित हो रहा था।
हिम अम्बर भी डोल रहे थे,
निशा थर थर कांप रहीं थी।
काल भैरव थे नाच रहे,
हवा भी चिंघाड़ रही थी
देख प्रकृति के रौद्र रूप को,
मन आशंकित हो रहा था
चीख रहे थे बादल भी
चीख रहे थे मानव भी
अंधे हुए थे जो यौवन में
वे वैसे ही भाग रहे।
देख प्रकृति के रौद्र रूप को,
मन आशंकित हो रहा था
भरता था जो दम्भ खुद पे
नित नये नये खोज करता था
प्रकृति के इस रौद्र रूप से
विज्ञान भी थर थर काँप रहा
देख प्रकृति के रौद्र रूप को,
मन आशंकित हो रहा था।
