डर.....
डर.....
भयभीत होना कहाँ आसान है होता ,
जिन पलों से नफ़रत होती हैं,उन्हें याद करके घुटना हैं पड़ता....
भूल तो जाऊँ सबकुछ, याद ना करूँ कुछ,सोचना हैं पड़ता,
फिर भी किस्मत कहाँ हार है मानती,
कभी -भी,कहीं-भी,किसी -भी रूप में डर को सामनें हैं लाती.....
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कोई देख ना लें इस ड़र से,आँखों का पानी सूखाना था पड़ता,
सिसकियाँ लेते हुए भी मुँह को दबाकर, बिना आवाज रोना था पड़ता,
किसी को भी आहट ना पड़ जाए ,ऐसे ख़ुद को पिछे अलमारी के दबोचना था पड़ता,
हर रिश्तों से मिलने से पहले, जिस्म के हर घाव को इज्जत के लिबास में छुपाना था पड़ता,
बंद तालों के दरवाजों के पीछे ,जब ज़िंदगी को जीना था पड़ता,
समझ लो डरना कहाँ आसान हैं होता......
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आज भी जब डर अंजान राहों में, जब हैं मिलता....
साँसें उखड़ने लगती हैं मेरी,
आँखों में सरिता पनाह हैं लेती,
जिस्म कहता हैं ना रहा कोई,उससे अब रिश्ता,
हर सोच की आखरी ख्वाहिश, काश! मौत ही होती....
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हाँ,मैं बहुत हूँ डरती, उन पलों से...
हजारों मौत हूँ मरती, उन पलों से.....
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काश! तू कहीं से तो आता ....बचाने मुझे इस डर से....
""""" हाँ, मैं बहुत डरती हूँ """"
#सना
