डिजिटल प्यार
डिजिटल प्यार
ज़माना डिजिटल हो गया है,
प्यार आजकल डिजिटल हो गया है,
सच्चे प्यार का जज़्बा कहीं खो गया है,
फ़ेसबुक इंस्टाग्राम की दुनिया में
इंसान गुम हो गया है,
प्यार आजकल डिजिटल हो गया है,
सिर्फ प्यार ही नहीं दोस्ती भी
आजकल सिमट कर रह गई है,
नुक्कड़ की दुकान पर दोस्तों संग
चाय के दृश्य को तो अब आँखें तरस गयीं हैं,
निभाये जा रहे हैं रिश्ते सभी ऑनलाइन,
किस त्योहार पर फ़ोटो डालकर
किसे टैग करना है रिश्तेदार देते हैं
अब ये गाइडलाइन,
इंसान का अस्तित्व कहीं खो सा गया है,
प्यार आजकल डिजिटल हो गया है,
अब तो दिया जाता है प्रियतम को
ऑनलाइन तोहफा,
मगर आजकल कोई नहीं करता
एक दूसरे से वफ़ा,
ऑनलाइन की दुनिया जरूरी हो गयी है,
वास्तविकता से इंसान दूर जा रहा है,
सारे रिश्ते अब मोबाइल से निभा रहा है,
रिश्ते आजकल खामोश हैं,
और ऑनलाइन दुनिया में अलग ही शोर है,
इतने साधन होने के बाद भी इंसान खुद में
अकेला हो गया है,
प्यार आजकल डिजिटल हो गया है,
डिजिटल दुनिया को मान बैठे हैं सब अपना,
रिश्ते, अपनापन ये सब जैसे लगते हैं सपना,
इंसान संवेदनहीन हो गया है,
हां ज़माना आजकल डिजिटल हो गया है,
कहते हैं कि तरक्की कर रहे हैं,
इंटरनेट के द्वारा लोग आगे बढ़ रहे हैं,
पर ये नहीं बताते इससे तनाव अवसाद और
अकेलापन भी बढ़ गया है,
हां ज़माना आजकल डिजिटल हो गया है।
