डाक कबूतर
डाक कबूतर
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हम डाक कबूतर हैं मेरे दोस्त
गले में तावीज़ पहने घूम रहे हैं,
जरूरी काम के लिए चुने गये हैं
किसी खेमे से ताल्लुक नहीं है हमारा,
हम सफ़ेद हैं कोरे कागज़ की तरह
हम बस काम आने वाले कबूतर हैं,
रंग हैं हमारे तावीज़ो पर बेशक
पर यह रंग हमने चुने नहीं हैं,
चुना है जैसे तोते ने हरा
ओढ़ा है कुछ चिड़ियों ने गेरुआ,
हंस सफ़ेद रंग पर गर्व करता है।
हमने किसी किताब को नहीं पढ़ा
तावीज़ में जो चिट्ठी लगी है
हमने उस चिट्ठी को भी नहीं पढ़ा,
बस उड़ते रहते हैं तावीज़ लटकाये
फेसबुक ट्वीटर के खुले आकाशों में,
हमें नहीं मतलब ज़माने के हाल का
हम बस डाक कबूतर हैं मेरे दोस्त।
