चवन्नी
चवन्नी
बात उन दिनों की है,
जब चवन्नी भी कुछ हुआ करती थी।
बड़ा इतराती थी वो,क्योंकि
पैसो से ज्यादा खनका करती थी।
एक दिन अठन्नी ने चवन्नी से कहा,
जाओ रुपए को चाय पिलाओ।
मगर कोई शिकायत हो भी तो,
खुद समझो मुझे न बताओ।
चवन्नी चाय लेे कर,
रूपए के पास पहुंची।
चुस्की लेे कर रूपया बोला,
सांझ ढले सज कर मेरे घर आना।
चवन्नी विरोध कर बैठी,
रुपए की औकात पूछ बैठी।
वो बोला मेरे पास तेरी जैसी चार हैं,
दो शून्य मेरे बिगड़ैल यार हैं।
रुपए ने ऐसा षडयन्त्र रचा,
चवन्नी और उसकी सेना को मिटा,
अठन्नी पर अपना शिकंजा कसा
वो भी न मानी तो उसको भी डसा।
अब रुपए का बोलबाला था,
दो शून्यों के साथ खेलता था।
उसका हर अंदाज निराला था ,
कोई अब कुछ न कहने वाला था।
सिक्का खूब धूम मचा रहा था
सिक्के को अहसास भी न था,
अपने से छोटों को मिटा कर
खुद सबसे छोटा हो गया था।
एक दिन बाज़ार फिर सजा था,
सिक्के का चेहरा कुछ बुझा बुझा था।
लाउड गाना बैंड बाजा बज रहा था,
कार से दस का सिक्का उतर रहा था।
