STORYMIRROR

Rashmi Lata Mishra

Others

3  

Rashmi Lata Mishra

Others

चक्रव्यूह

चक्रव्यूह

1 min
261

कभी-कभी परिस्थितियां

हो जाती बेईमानी,

इंसान की हालत तब

 हो जाती तूफानी।

कुछ तूफान बाहर तो,

कुछ अंदर घेरे रहते हैं,

नए-नए चक्रव्यूह जब

घेरा डाले रहते हैं।

ऐसे ही एक भँवर जाल में

फंस गई नाव हमारी है।

क्या कहूं इस संकट को

इसकी तो बलिहारी है।

ना ही धरती में हूँ मैं ना पानी में हूँ,

ना हाथ स्वतंत्र ना पाऊं

स्वतंत्र अजीब परेशानी में हूँ।

पीठ पर बंधा है बोझ का दाँव

उड़ने में असमर्थ बैठने की ना छाँव।

ऊपर छाया आसमान बेशुमार

नीचे फैला समंदर अपार।

देख तो सब सकता हूँ

पर हूँ कितना लाचार,

सामने है टापू रूपी मंजिल,

पर मैं हूँ पहुंचने से लाचार।

मन मस्तिष्क ले रहा हिलोरे

लगा रहा कयास कैसे पहुंचा

मंजिल के पास?


Rate this content
Log in