चिट्ठी जो लिखी उसे भेज नहीं
चिट्ठी जो लिखी उसे भेज नहीं
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चिट्ठी जो लिखी उसे भेज नहीं पाए किन्तु,
लिखने का आग्रह और टाल नहीं पाए
होठों ही होठों में बंद रहे संबोधन,
मन के अवगुंठन को काट नहीं पाए
दीपक था नेह सिक्त बाती थी चिनगी थी,
काँप गये हाथ हाय बाल नहीं पाए
बंधन में करने की इच्छा ही नहीं हुई,
मोहक थी मीन फेंक जाल नहीं पाए..
