छपाक से...!
छपाक से...!
ख़ुशी छीन ले गया,
हंसते हुए चेहरे की,
कोई छपाक से....
अंधेरा सा छा गया,
लूट ले गया सबकुछ,
कोई छपाक से....
आस भी नहीं,
कोई उम्मीद भी नहीं,
दिल को क़तरा-क़तरा कर गया,
कोई छपाक से....
दिन भी लगने लगा अब,
अँधेरी रात सा,
सूरज पे मानो ग्रहण लगा गया,
कोई छपाक से....
तिनका-तिनका कर,
पक्षियों ने घर बनाया बरसात में,
यूँ ही उजाड़ गया,
कोई छपाक से....!
मेरी माँ ने एक ख्वाब बुना,
आधी रात जागकर,
सुबह आया मिटा गया
सूरज सा,
कोई छपाक से....
हंसते हुए चेहरे की ख़ुशी,
मिटा गया यूँ ही,
कोई छपाक से....
जिन आँखों में ख़ुशी थी,
हमेशा उसके लिए,
ख़ुश्क कर गया आया,
कोई छपाक से....
हम पैदा हुए धरती पर,
एक इंसान की तरह,
जाति-धर्म,मज़हब-संप्रदाय
के नाम पे बांट दिया,
कोई छपाक से....
निर्मल से बहते पानी,
औऱ ख़ुशबूदार हवाओं में,
विष घोल गया,
कोई छपाक से....
बच्चों को बच्चा रहने ना दिया,
पल भर में रोबोट
बना गया,
कोई छपाक से....!