छोटे मकानों के रोशनदान
छोटे मकानों के रोशनदान
कहाँ गए वे छोटे मकान
रोशनदान जिनमें हुआ करते थे
हवाएं मदमस्त लहराती थी
कदरदान बैठे हुआ करते थे
कच्ची थी दीवारें, नींद पुरस्कून
उमीदों से दिल भरे होते थे
खलिश थी ग़ुम माहौल से
जज़्बात दिलों को सहलाते थे
अखलाख था जहाँ नज़र आता
खवाब छोटे छोटे हुआ करते थे
ग़ुम थी चिंगारियां नफरत की
स्कून से पल पल गुज़रते थे
फितरत रंग न बदलती थी
अल्फ़ाज़ बेमुरव्वत न होते थे
सीनों में चुबन न दिखती थी
एहसास दिलों में बस्ते थे
चाहत व जनून इबादत थी
एक दूजे की दुआ हुआ करते थे
अंधेरों को रोशन करने के लिए
अश्कों के दिए न जलते थे।
