बूढ़ी औरत
बूढ़ी औरत
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बूढ़ी औरत
द्वार द्वार जाकर
फल बेचती
रसीले मीठे मीठे
ताजे सुस्वादु
शोभती लाल बिंदी
झुर्रियों वाला
चेहरा चमकता
पोपला मुंह
खाता रहता पान
दरवाजे पर
देती आवाज मीठी
मीठे फल लो
कहती फल वाली
नहीं चाहिए
घर के अंदर से
कहता कोई
कहती वो रुपये
बाद में देना
कयी सौ रुपयों का
देती उधार
अड़ती न कभी वो
विश्वास था
फलों भरी टोकनी
झुकी कमर
जब होगी युवती
सोचती होगी
सपने होंगे सच
फल बेचकर
बिके फलों में छिपे
जीवंत अरमान
