बूढ़े दम्पत्ति
बूढ़े दम्पत्ति
सैकड़ों हजारों और हजारों की संख्या में
खड़े हैं बूढ़े दम्पत्ति
अपने अपने घरों के बाहर।
अपने घरों के बाहर कच्ची पगडंडियों पर
और कुछ अपने गांवों से थोड़ी दूर
रेलवे स्टेशनों के बाहर
बिना छतरी वाले इक्कों के साथ।
ये बूढ़े दम्पत्ति इन्तजार कर रहे हैं
अपने अपने बेटों-बेटियों
नाती-पोतों बहू और बच्चों का
जो छुट्टियों में
आएंगे दूर-दूर बसे शहरों से
उनके जीवन का अंधेरा
और अकेलापन दूर करने के लिये।
किसी ने बनाया है अपने हाथों से
देशी घी का लड्डू
किसी ने तैयार किया है
अपने हाथों से
मिट्टी के खिलौने और घरौंदे
किसी ने कपड़ों की
छोटी सी गुड़िया
किसी ने कुछ
तो किसी ने कुछ
अपने पोतों-नातियों और नतिनियों के लिये।
सभी की सूनी आंखें टिकी हैं
गांव की पगडंडियों पर
रेलवे लाइन पर
और दूर से दिखती हर छाया पर।
कोई उचक-उचक कर
कोशिश कर रहा है देखने की
दूर से आती हर छाया में
अपने ही कुनबे का प्रतिबिंब
कोई कोशिश कर रहा है
अपने कानों पर हाथ लगाए
दूर से आती हर आवाज में
अपने कुनबे की पदचाप सुनने की।
पर हाय रे दुर्भाग्य
इन सभी बूढ़े दम्पत्तियों का
रेडियो पर आई मनहूस खबर
देश की राजधानी में
सीरियल बम ब्लास्ट
पूरे देश में हाई रेड एलर्ट
सभी छुट्टी स्पेशल ट्रेनें रद्द।
बेचारे हजारों हजार बूढ़े दम्पत्ति
रह गये स्तब्ध
उनके सुनहरे सपने बिखर गये
एक धमाके के साथ
कुछ बूढ़े दम्पत्ति घिसटते पिसड़ते भागे
गांव के नजदीकी पुलिस थानों की ओर
खबरों की सच्चाई जानने को
और कुछ अपने घरों के अंधेरों में जाकर
दुबक गये बिस्तरों में
एक दूसरे के हाथों पर हाथ रखकर
अगली छुट्टियों के इन्तजार में।