बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
उम्र का हर पड़ाव अपना असर दिखाता है
बचपन और जवानी तो कट जाते हैं जैसे तैसे
पर बुढ़ापा तो अलग रंग से ही छाता है।
जो कभी भी किसी सहारे का ना मोहताज़ था
वो अब चलते चलते ही लड़खड़ाता है
खाने में भी वो पहले वाली बात कहाँ
अब तो स्वाद नहीं बस पेट भरने को ही खाता है।
इन सब बातों से ज़िद सर पर सवार होती है,
तभी तो बूढ़े और बच्चों को अपनी ही बात ग्वार होती है ,
इसे सनक कह देते हैं बुढ़ापे की ,
पर ये तो परिणाम है अपने खोये हुए आपे की ।
कुछ तजुर्बे जीवन के उन्होंने ऐसे किये हैं,
कि कड़वे घूंट वक़्त के पिये हैं
रोकते हैं, टोकते हैं, हमारी वही हालत देखकर ,
तभी तो सनकी नाम से खुद को बदनाम किये हैं।
इसीलिए कहता हूँ समझ जाओ दोस्तों
तुम भी इस सनक को,
ये बुढ़ापे की सनक इक ना इक दिन हमको भी आनी है।
