बुलबुल तेरी सरस कहानी
बुलबुल तेरी सरस कहानी
बुलबुल तेरी सरस कहानी,
जिसने जानी उसने मानी।
मेरी लेखनी मुझसे कहती
"प्रहरी" तूने कब पहचानी।।
जहाँ सुखद हो नित्य सवेरा,
बुलबुल करती वहीं बसेरा।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर
खूब सजाती अपना उसेरा।।
बनती है बुलबुल एक मां जब,
नन्ही जानें किलक उठें तब।
सुबह-शाम दाना लाती है ,
उसके लिए विश्राम कहां कब ?
जब उड़ान बच्चे भरते हैं,
प्रतिस्पर्धा वह करते हैं।
मां देती आशीष निराला
भव्य जगत अब रहे तुम्हारा।।
फिर वर्चस्व बढ़ाते हैं वह,
नील गगन के दामन में।
फिर से सरस कहानी घटती
अन्य सुखद किसी प्रांगण में।।